Pandit Ji स्वास्थ्य वास्तुकला त्यौहार आस्था बाज़ार भविष्यवाणी धर्म नक्षत्र विज्ञान साहित्य विधि

हवन के बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता, परन्तु बिना यज्ञ के हवन कभी भी हो सकता है।


Celebrate Deepawali with PRG ❐


संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 15-06-2021

हवन के बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं होता, परन्तु बिना यज्ञ के हवन कभी भी हो सकता है।

इस धरा पर प्रत्येक जीव जीवन प्राप्ति की प्रेरणा और लक्ष्य के साथ गर्भ मे आते हैं। सभी जीव गर्भकाल से ही संघर्ष करते हुए जीव जगत में विचरण और कर्म करते है। जिसमें मनुष्य सबसे ज्यादा सक्षम और संस्कारी जीव है। मानवीय जीवन के प्रत्येक पंथ और संप्रदाय मे विधि विधान और कर्म कांड स्थापित हैं। यह अकाट्य सत्य ही है कि सनातन संस्कृति वैज्ञानिक तथ्यों पर ही आधारित हैं। इन्ही वैज्ञानिक तथ्यों के कारण सनातन संस्कृति समूचे विश्व मे अपना लोहा मनवा रहा है। सनातन संस्कृति मे संस्कार तथा विधि विधान अतिआवश्यक है, परंतु प्रत्येक संस्कार और विधि विधान मे प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक नियामकों का पालन करते हुए नकारात्मक ऊर्जा व विकार को नष्ट कर सुख, समृद्धि और शक्तिवर्धन पर विशेष ध्यान दिया गया है।

प्राचीनतम काल से ही सनातनी ऋषि मुनियों द्वारा हर कार्य के पीछे ब्रह्माण्डीय, वैज्ञानिक और संसारिक तथ्यो को गहराई से परखने के बाद विधि-विधानों की रचना की गई है। जिन्हें आधुनिकता की भाषा में कर्म कांड कहा जाता है, जिसे कुछ तथाकथित अल्पज्ञानी जानकारों द्वारा व्यर्थ और अनुपयोगी बताया जाता है। इस संस्कृति को नष्ट किए जाने का प्रयास अनेकों आतताइयो द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन इसके विपरीत सनातन संस्कृति बढ़ रही है, जिसका परिणाम है कि सनातन संस्कृति को लेकर समूचा विश्व नतमस्तक है। इस संस्कृति में हवन, यज्ञ और पूजा के पीछे कई गहरे वैज्ञानिक तथ्य एवं तर्क छुपे हुए हैं, जिनके ज्ञात हो जाने मात्र से एक व्यक्ति विशेष का ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवीय सभ्यता भी लाभान्वित होगी। सनातन परम्परा के अन्तर्गत प्रत्येक सामान्यजन कभी ना कभी हवन अथवा यज्ञ में सम्मिलित रहता है, किन्तु उन्हें यह ज्ञात ही नहीं होता है, कि वे हवन कर रहे थे या यज्ञ।

हवन तथा यज्ञ का नाम आते ही सामान्यजन में आचार्य, मंत्र, अग्नि, समिधा और हवन कुंड के विचार आते है, जिन्हे कुछ लोग धर्म-कर्म, कुछ लोग ज्ञान-विज्ञान और कुछ के अनुसार मात्र एक आडम्बर ही माना जाता है। लेकिन सत्य तो इसके भी परे है। सनातन संस्कृति में प्रत्येक मानवीय कर्म को हवन प्रक्रिया के रूप में जोड़ा गया है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार यज्ञ हो अथवा हवन हो, दोनों ही माध्यम से प्रकृति के वातावरण को शुद्ध किया जाता है। लेकिन सही विधि एवं अर्थ का ना पता होना धर्म-कर्म ज्ञान-विज्ञान का वास्तविक मर्म समाप्त कर देता है। विद्वानों द्वारा घर, मन्दिर या किसी पूजा स्थल पर असल में किस प्रकार का कार्य हो रहा है, इसका ज्ञान प्रत्येक सनातनी को होना ही चाहिए।

देवता पांच तत्वों से मिलकर बने हैं, जिसमे अग्नि, जल, वायु आकाश, भूमि का समावेश है और  हवन और यज्ञ दोनों में घृतं(घी), हवि अथवा चरु अनिवार्य रूप में समर्पित की जाती है। बिना हवि अथवा चरु समर्पण के कोई भी हवन अथवा यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता है। हवि का तात्पर्य शुद्धान्न(भात), गुडान्न(गुड़ से बना पकवान), पायस(मिष्ठान या दूध से बना मिष्ठान) आदि से है और चरु का तात्पर्य सूखी गरी, लाज(लाइ), मूडी(लेइआ), पंचमेवा, जौ, तिल, सभी प्रकार की औषधीय वनस्पतियों आदि से है। घृत(घी) का मतलब केवल गाय के दुग्ध से निकली वसा है।

अर्थात हवि, चरु और घृत(घी) से हवन और यज्ञ दोनों ही पूर्ण किये जाते हैं।

महर्षियों द्वारा सनातन संस्कृति के कल्प सूत्रों में हवन (होम) व यज्ञ विधान में भेद बताये गये हैं, जो इस प्रकार हैं -

हवन (होम) - देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिये उपासना के रूप में जप,अभिषेक एवं अर्चना का विधान पूर्ण कर वैदिक मन्त्रों का पाठ अथवा उच्चारण सहित आहुति (चरु हविः (समिधा) तथा घृत) अग्नि को देकर ब्रह्मांडीय व प्राकृतिक शक्तियों को दिये जाने वाले भोग/धन्यवाद को ही हवन अथवा होम कहा जाता है।  

कल्प सूत्रों में इसका विधान महर्षियों द्वारा रचित है। सनातन संस्कृति में हवन को शुद्धिकरण का एक कर्मकांड माना जा सकता है। ऐसे बहुतेरे हवन प्रक्रियाओं के अग्नि-कार्य वैदिक नियामकों के अधीन नहीं हैं, जिनमें वैदिक मन्त्रों का पाठ और मन्त्रों के उच्चारण सहित आहुति अनिवार्य नहीं है। जैसे अग्नि के लिए ग्रास, गौ ग्रास, इत्यादि कर्म आते है।

परंतु ऐसे बहुतेरे हवन प्रक्रियाओ में अग्नि-कार्य वैदिक नियमांकों के अधीन हैं, जिनमें वैदिक मन्त्रों का पाठ और मन्त्रों के उच्चारण सहित आहुति अनिवार्य है। जैसे ललिता होम, सहस्रनाम होम, गीता हवन, सुदर्शन होम, शत्रुसंहार होम, सुब्रह्मण्य होम, धन्वन्तरि होम, गणपति होम, नवग्रह होम, पुरुषसूक्त होम, श्रीसूक्त होम इत्यादि कर्म आते हैं।

यज्ञ – किसी भी सिद्धि, उद्देश्य, साधन विशेष योजना अथवा प्रयोजन को पूर्ण करने के उद्देश्य से ईश्वरीय अथवा दैवत्य प्राप्ति की इच्छा से किया गया कृत्य या अनुष्ठान ही यज्ञ है। यज्ञ किसी भी योजनाओं के प्रारम्भ से योजना की पूर्णता तक माना जा सकता है। यज्ञमान योजनाओं की पूर्णता के लिये प्रारम्भ से अन्त तक धार्मिक एवं व्यवहारिक सिद्धि की चाह में सामाजिक, पारिवारिक एवं अध्यात्मिक आवश्यकता को भी पूर्ण करता है। आलसी, अकर्मण्य और उधम  करने वाला यज्ञ नहीं कर सकता है। इसलिये सनातनी संस्कृति में यज्ञ उद्योग, उद्यम, क्रियाशीलता एवं योजनात्मक वृद्धि का सूचक मानते हैं। यज्ञ शुभ कर्म, श्रेष्ठ कर्म, सतकर्म, वेदसम्मत कर्म है। सकारात्मक भाव से ईश्वर-प्रकृति तत्वों से किए गए आह्‍वान से जीवन की प्रत्येक इच्छा पूरी होती है।

निष्कर्ष - किसी भी सिद्धि, उद्देश्य, साधन विशेष योजना अथवा प्रयोजन के पूर्ण होने के पश्चात धार्मिक एवं व्यवहारिक सिद्धि की चाह में सामाजिक, पारिवारिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता हेतु ईश्वर-प्रकृति तत्वों को भोग/धन्यवाद दिया जाता है, जिसके लिए हवन का प्राविधान होता है। अर्थात् बिना हवन के कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं किया जा सकता है, परन्तु बिना यज्ञ के कोई भी हवन कभी भी किया जा सकता है।

पंडितजी पर अन्य अद्यतन