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सुमुखी भागीरथ गंगा महापातकों के बराबर के दस पापों से छुटकारा दिला कर दशहरा कहलाती है।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 10-06-2021

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। सनातन संस्कृति में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। भागीरथी द्वारा गंगा जी को ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि हस्त नक्षत्र बुधवार युक्त स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा दशहरा तिथि को ही उतारकर लाये थे, तभी से ही गंगा जी के पूजन की परंपरा चली आ रही है। गंगा दशहरा को स्नान, दान, तर्पण करने से दश पापों का विनाश होता है, इसलिए इस तिथि को दशहरा बोला जाता है। गंगा दशहरा के दिन अपने पितृों को याद करके उन्हें तर्पण जरूर करना चाहिए ऐसा करने से उनके आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

माँ गंगा के अवतरण की कथा:- 

अयोध्या में सगर नाम के महाप्रतापी राजा की केशनी तथा सुमति नामक दो रानियाँ थी। केशनी रानी के एक पुत्र असमंजस परंतु सुमति रानी के साठ हजार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजन कर यज्ञ पूर्ति के लिए अश्व छोड़ा, यज्ञ को भंग करने की मन्शा से इंद्र ने उनके यज्ञीय अश्व का अपहरण कर अश्व को कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा ने यज्ञीय अश्व की खोज में अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा। सारा भूमंडल ढूंढने के बाद भी यज्ञीय अश्व नहीं मिला और अन्त में यज्ञीय अश्व को कपिल मुनि के आश्रम में बंधा पाया, तत्समय महर्षि कपिल तपस्या में लींन थे और अश्व भी उन्हीं के पास घास चर रहा थे। जिसे देखते ही सगर के सभी पुत्र चोर-चोर चिल्लाने लगे। जिस कारण से महर्षि कपिल का ध्यान टूट गया और ज्यों ही महर्षि के नेत्र खुले, त्यों ही सभी पुत्र जलकर भस्म हो गए और सभी साठ हजार की भस्मी का पहाड़ बन गया। अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब मुनि के आश्रम में पहुंचा तब गरुड़ ने भस्म होने का सारा वृत्तांत सुनाकर कहा कि यज्ञीय अश्व को ले जायें और अपने पितामह के अश्वमेध यज्ञ को पूर्ण कराने के बाद सुझाव दिया कि इन सभी पितृव्य चरणों की मुक्ति गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाने से ही होगा। अंशुमान ने यज्ञमंडप पर पहुंचकर सगर से सारा वृत्तांत सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरांत सगर के वंश में अनेको राजा हुए और उन साठ हजार पूर्वजों की भस्मी पहाड़ को गंगा के प्रवाह से पवित्र करने का भी प्रयत्न किया, किंतु वे असफल रहे। अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप भी जीवन पर्यंत तपस्या करके गंगाजी को मृत्युलोक पर ना ला सके।
अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने तीर्थ में गोकर्ण जाकर कई वर्षों की कठोर तपस्या के बल पर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर ब्रह्मा वर स्वरुप गंगाजी को मृत्युलोक पर ला सके। जब भागीरथ ने ब्रह्माजी से गंगाजी को पृथ्वी पर ले जाने की इच्छा रखी, तब ब्रह्माजी ने कहा, '' हे राजन! गंगा जी को पृथ्वी पर ले जाना सरल नहीं है, उनके वेग से पृथ्वी ही नष्ट हो सकती है और गंगाजी के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शिव में है। इसलिए गंगा का भार एवं वेग संभालने व नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर गंगा जी को पृथ्वी पर ले जाये।'' तत्पश्चात भागीरथ एक अंगुठे के बल खड़े होकर कठोर तपस्या के बल पर भगवान शिव को भी प्रसन्न किया, जिसके बाद गंगा को भगवान शिव ने अपनी जटाओं में धारण किया। गंगा जी को ऐसा अहंकार था कि में शंकर जी की जटाओं को भेद कर रसातल में चली जाऊँगी, किन्तु गंगा जटाओं में गिरते हुये विलीन हो गयी।
पुराणों के अनुसार शंकर जी की जटाओं में गंगा जी कई वर्षों तक भ्रमण ही करती रह गयी, लेकिन उन्हें रसातल का कहीं मार्ग ही नहीं मिला। भागीरथ के पुनः अनुनय-विनय करने पर नन्दीस्वर ने प्रसन्न होकर जटाओं की एक लट खोलकर ब्रह्माजी द्वारा निर्मित हिमालय स्थित बिंदुसार में गंगा को रास्ता दिया। भागीरथ दिव्य रथ पर आगे-आगे चल पड़े और गंगा जी सात धाराओंं में विभक्त होकर उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। धरातल पर आते ही गंगा जी जिस रास्ते से गंगा जी जा रही थी उस मार्ग पर हाहाकार मच गया। उसी मार्ग में ऋषिराज जन्हु का तपआश्रम पड़ा, विकराल गंगा के कारण तपआश्रम में विघ्न समझकर वे गंगा जी को पी गये फिर देवताओं के अनुरोध पर गंगा जी को मुख से निष्कासित कर उन्होंने गंगा जी को पुनः जंघा से निकालने का मार्ग दे दिया। इस प्रकार अनेक तीर्थ स्थानों का तरन-तारण करते हुए गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच कर सागर के साठ हजार पुत्रों के भस्मावशेष का तारण कर मोक्ष और मुक्त प्रदान किया।
भागीरथ के अपने पितरो के प्रति प्रेम और त्याग से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट होकर भगीरथ के साठ हजार पितृव्य चरणों को अमरता वर देते हुए गंगा जी को भगीरथी नाम उद्घोष किया, जिसके बाद से गंगा को भगीरथी भी पुकारा जाता है।
वराह पुराण अनुसार, ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष हस्त नक्षत्र युक्त सोमवार दशमी तिथि को घोर पापों को नष्ट करने वाला माना जाता है। यदि ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि मंगलवार और हस्त नक्षत्र युक्त तिथि हो, तो भी यह तिथि सब पापों के हरने वाली होती है। हस्त नक्षत्र बुधवार युक्त हो, तो अत्यंत शुभ है। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।

गंगा-दशहरा तिथि में ‘दशविध-स्नान’ का बहुत महत्त्व है।

1.गोमूत्र स्नान 2.गोमय स्नान 3.गौदुग्ध स्नान 4.गौदधि स्नान 5.गौघृत स्नान 6.कुशोदक स्नान 7.भस्म स्नान 8.मृत्तिका (मिट्टी) स्नान 9.मधु (शहद) स्नान 10.पवित्र जल स्नान

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