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लक्ष्मी का एकांश रंभा की भक्ति-साधना से साधक की काया सौम्य और सौभाग्य सशक्त होता है ।


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संकलन : वीनस दीक्षित तिथि : 10-06-2021

रंभा तीज पर्व शुभ मुहूर्त
आरंभ: 12 जून, शनिवार को रात्रि 20 बजकर 19 मिनट.
समापन: 13 जून, रविवार को रात्रि 21 बजकर 42 मिनट.

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को सुहागिन महिलाऐ रंभा तीज पर्व विशेषकर बड़ी धूमधाम से मनाती हैं। इस पर्व तिथि को रंभा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। सामान्य दिनचर्या में कोई व्यक्ति, जीवन के तनावों और बीमारियों से ग्रस्त होने के परिणाम स्वरुप निरन्तर प्रेम और सौम्यता को खो देता है, जिसकी प्रतिपूर्ति के लिए व्यक्ति को रंभा देवी का पूजन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कार्तिक माह कृष्णपक्ष की एकादशी को रम्भा एकादशी व्रत का धर्मिक महत्व अतिविशिष्ट है। जिसे चातुर्मास की अंतिम एकादशी भी कहते हैं।
रंभा तृतीया को सुहागन महिलाऐं पतियों की दीर्घआयु और सौभाग्य प्राप्ति की कामना और गुणवान संतान की इच्छा से अप्सरा रंभा को माँ लक्ष्मी का एकांश रूप मानते हुए पूजन पाठ करती हैं। इस तिथि को सुहागन महिलाएं पूर्ण सोलह श्रृंगार धारण कर भक्तिभाव से विधिवत गेहूं से बना व्यंजन, फूल, नैवेध चूडियों का जोड़ा माँ लक्ष्मी व पार्वती सहित शिव जी, गणेश भगवान को अर्पण करते हुए पूजन अर्चन करती हैं और देवी देवता को चढ़ाया गया अर्पण सामग्री और श्रृंगार द्रव्य शुभेक्ष सुगगिनों को भेट करती हैं। कुँवारी कन्याऐं भी गुणी व सुसंस्कृत वर की कामना करते हुए रंभा तीज के पर्व पर अप्सरा रंभा देवी की पूजन करती हैं।
पौराणिक मान्यतानुसार कलियुग में रंभा साधना से सौभाग्य और सशक्त हो जाता है। देवी रंभा की भक्ति करने से भक्त के शरीर में रोग नहीं पनपते हैं और बढ़ती उम्र के साथ बुढ़ापा भी नही आता है। भक्त का तन और मन, आर्कषक और प्रभावितशाली हो जाता है। भक्त में प्रेम और सौम्यता की भावना कभी समाप्त नहीं होती है।
यदि साधक देवी की भक्ति करके रंभा के मंत्र को सिद्ध कर लेता है, तो जीवन पर्यन्त साधक की काया में सौम्यता बनी रहती है। रंभा साधना से व्यक्ति के जीवन में प्रेम और समर्पण के गुण स्वतः प्रस्फुरित होते हैं। सभी मनोरथ भी पूर्ण होते है।
पुराणों के अनुसार देव-दानवों के मध्य समुद्र मंथन हुआ, जिसमे सुंदर मनमोहक व आकर्षक रंभा अप्सरा का भी अवतरण हुआ और रंभा के अतिरिक्त अन्य पांच भी अप्सराऐ प्रगट हुई। सभी अप्सराएं मन-मोहक रूपसी, कला निपुण और मधुर वाणी से शोभायमान थी, लेकिन सभी अप्सराओ में सुन्दरतम वस्त्र से अलंग्कृत, सौंदर्य प्रसाधनों से युक्त-सुसज्जित, चिरयौवना रंभा अत्यधिक रूपवान और गुणवान थी।
रंभा अप्सरा की प्रचलित और लोकप्रिय कथा हैं कि इंद्र सहित देवो के आग्रह से रम्भा ने विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दी थी, जिसके कारण विश्वामित्र ने क्रोध में आकर अप्सरा रंभा को कई वर्षों तक पत्थर का बने रहने का श्राप दे दिया। जिसके बाद उसी अवस्था में रहते हुए कठोर तप से रंभा ने भगवान शिव-पार्वती को प्रसन्न किया और वरदान स्वरुप अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त किया। लेकिन वाल्मीकि रामायण अनुसार विश्वामित्र के श्राप से पत्थर की मूरत बनी रंभा को एक ब्राह्मण के तप के कारण ऋषि विश्वामित्र के श्राप से मुक्त मिली थी। स्कन्दपुराण में श्वेतमुनि के छोड़े गए बाण से रंभा को सामान्य रूप मिला।

रम्भा कौन थी?

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