संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 31-03-2022
जीवन में भावी संकटों, कष्टो और दैनिक कई समस्याओं से त्वरित निजात दिलाने में रत्न काफी सहायक सिद्ध होते है, परन्तु रत्न यदि ग्रहों की सही स्थिति को देखकर उचित समय से धारण ना किया जाएं, तो इनका नाकारात्मक प्रभाव ही प्राप्त होता है। रत्नों की दुनिया वाकई जादुई-सी है। रत्न बड़ी से बड़ी परेशानी को अपने प्रभाव से खत्म करने की क्षमता रखते हैं। रत्नों पर तन-मन से पूर्ण विश्वास रखने से उसका प्रभाव कई गुना बढ़ता और ज्यादा लाभ की संभावनाए सशक्त होती है।
ज्योतिष रत्न विज्ञान में विभिन्न ग्रहों की रश्मियों व तरंगों को रत्नों के माध्यम से मानवीय शरीर तक स्थापित किए जाने का अस्थायी उपाय अथवा युक्ति है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार रत्न धारण की कई पद्धतियां हैं, परंतु बिना सिद्धि अथवा प्राण प्रतिष्ठा के रत्न को धारण करने का विधान नहीं दिया गया है। सिद्धि अथवा प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त रत्न भी जाग्रत होकर विशिष्ट एवं चमत्कारी परिमाण देने लगते हैं।
कई सदियों से शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को अंत करने हेतु गोमेदक (तुरसावा) उपयोग में लाया जाता है। गोमेदक (तुरसावा) धारण करने मात्र से ही शारीरिक तथा मानसिक सुख-शांति, समृद्धियां शक्तियों में वृद्धि होती है। वैज्ञानिक गोमेदक (तुरसावा) को नेसोसिलेकेट्स समूह का पुराना और प्राकृतिक खनिज मानते हैं, जिसका वैज्ञानिक नाम जीक्रोन है। पर्शियन भाषा में जीक्रोन शब्द के अतिरिक्त इसे जागरून भी कहा जाता है। नेसोसिलेकेट्स खनिज पदार्थ से जीरकोनियम नामक धातु भी निर्मित होती है। ज़िरकोनियम एक ऑर्थोसिलिकेट है। ज़िरकोनियम ऑर्थोसिलिकेट (ZrSiO4) एक रासायनिक यौगिक है। प्रकृति में ज़िरकोनियम एक सिलिकेट खनिज का रूप है। जिरकोनियम सिलिकेट चूर्ण को जीक्रोन आटा भी कहा जाता है। ज़िरकोनियम सिलिकेट आमतौर पर रंगहीन होता है,लेकिन अशुद्धियाँ विभिन्न रंगों को प्रेरित करती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला जिक्रोन (गोमेदक/तुरसावा) पृथ्वी पर 4.4 अरब वर्ष पुराना खनिज है। जिक्रोन (गोमेदक/तुरसावा) में कभी-कभी यूरेनियम के निशान मिलते हैं, जो स्वयं को विकिरणित कर गोमेदक (तुरसावा) के गुणों को बदलते हैं। रंगहीन गोमेदक (तुरसावा) को श्रीलंका के एक शहर के नाम पर "मटारा" जिक्रोन कहा जाता है, जहां इसका खनन भी होता है। बेरंग गोमेदक (तुरसावा) को आकर्षण और बहुरंगी प्रकाशित चमक के कारण ही अग्नि का प्रतीक कहा जाता है। ये गोमेदक (तुरसावा) गुण हीरे के गुणों से अत्यधिक मेल खाते हैं, जिस कारण सदियों से इन दोनों रत्नों के मध्य भ्रम चला आ रहा है।
हीरे का प्रतिपूरक रत्न गोमेदक (तुरसावा) हीरे के सतुल्य लाभकारी माना जाता है। यह विभिन्न रंगो (नीला, लाल, पीला, नारंगी, भूरा, हरा और सफ़ेद) मे पाया जाता है और अनेकों रंग के आधार पर ही गोमेदक (तुरसावा) अलग-अलग ग्रहो के उपचार में प्रयुक्त होता है। सफेद रंग का गोमेदक (तुरसावा) हीरे की पूर्ण प्रतिपूर्ति करता हैं।
रत्नों में हीरे को सम्राट तुल्य माना गया है और राज-तुल्य का सनीध्य होना ही मनुष्य की कई ज्ञात-अज्ञात चिन्ताओ और समस्याओं से दूर रखता है। इसी आधार पर ही एक राजा कीमती होता है और हीरा भी सर्वाधिक कीमत का ही मिलता है, जिसे जन समान्य सहजता से प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यदि गोमेदक (तुरसावा) को विधि-विधान के साथ मात्र धारण किया जाए, तो हीरे के समान ही सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की आवश्यकता को पूर्ण करता है। ऐसे में गोमेदक (तुरसावा) हीरे के समान एक प्रभावी पत्थर है और दुरुपयोग करना भारी हानि भी दे सकता है क्योंकि यह पत्थर बेहद प्रभावशाली ही माना जाता है। परिवारिक मे सुख-शांति आदि सदा के लिए बनी रहती है।
गोमेदक (तुरसावा) ZIRCON का सरलता से परीक्षण -
प्रथम प्रणाली - रत्न को हाथ में रखकर तीव्र प्रकाश केन्द्रित करे, यदि रत्न से चमकीला तेज प्रकाश आ रहा हो, तो निश्चय ही वह वास्तविक रत्न है और ऐसा नहीं है, तो उसके वास्तविकता मे संदेह है।
द्वितीय प्रणाली - पानी भरे कांच के गिलास में गोमेदक (तुरसावा) डुबो दे, यदि पानी भरे कांच के गिलास का रंग रत्न के रंग मे परिवर्तित होता है, तो निश्चय ही वह वास्तविक रत्न है और ऐसा नहीं है, तो उसके वास्तविकता मे संदेह है। यह विधि मात्र रंगीन गोमेदक (तुरसावा) के साथ कार्य नहीं करेगी।
गोमेदक (तुरसावा) ZIRCON का उपभोग अथवा उपयोग -
गोमेदक (तुरसावा) ZIRCON के लाभ अथवा हानियाँ -
गोमेदक (तुरसावा) ZIRCON के धारण का विधि विधान :-
शुक्रवार के दिवस दोपहर से पूर्व पूजन-पाठ के स्थल पर सफ़ेद रंग का वस्त्र के आसान पर बैठकर सोना, चांदी आदि से जड़ित गोमेदक (तुरसावा) की रत्न-मुद्रिका को दैव स्थान पर कच्चे दूध और गंगाजल संयुक्त कटोरी में स्थापित करते हुए धूप पुष्प, अक्षत इत्यादि समर्पित करने के उपरांत रत्न-मुद्रिका में विशेष शक्ति उत्पन्न हेतु शुक्र ग्रह के लिए 108 बार मंत्र (ॐ शुक्र देवाय नमः अथवा ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:) का जाप जाप कर लेने के पश्चात रत्न-मुद्रिका को गंगाजल से स्वच्छ कर ईष्टदेवी / देवता की प्रतिमा से स्पर्श कराकर प्रातः सूर्य की ओर मुख करके माता / माता तुल्य स्त्री अथवा गुरु / आदरणीय व्यक्ति के हाथ से दाहिने भाग के मध्यमा ऊंगली मे रत्न-मुद्रिका धारण कर सकते हैं।
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