संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 26-02-2022
सम्भव ही कोई ऐसा सनातन धर्मी होगा, जिसके कानों में देवों के देव महादेव.... यह शब्द न पड़े हों। भोलेबाबा का सनातन संस्कृति में जो स्थान है, किसी भी प्रकार से उसकी गरिमा को शब्दों के माध्यम से उकेरा नहीं जा सकता है। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से और इन्हें देवों के देव महादेव भी जाना जाता है।
शिव के विषय में कुछ भी कहना सहस्त्रों सूर्यों को एक दिया दिखाने जैसा है। भगवान शिव की आराधना करने से पूर्व भोलेनाथ के स्वरूप को जानना अत्यंत आवश्यक है। शिव में ही संपूर्ण ब्राह्मांड निहित है, शिव ही आदि हैं, शिव ही अंत और शिव ही सत्य हैं। ऐसे जगत के पालनहार भगवान भोलेनाथ की महिमा, लीलाओं और कथाओं का वर्णन सनातन संस्कृति के सैकड़ों व हजारों ग्रंथ में आच्छादित हैं। सनातन संस्कृति में शिव या महादेव के अनुनियों को शैव पन्थ (शिव धर्म) अथवा ‘आरण्य संस्कृति’ के नाम से जाना जाता है। शैव पन्थ के त्रिदेवों में से सबसे महत्वपूर्ण देवता शिव एक देव हैं।
शिव या महादेव जी सृष्टि के जगत पिता और संहारक हैं और भगवान विष्णु के परम भक्त भी माने जाते हैं। जिसका उल्लेख अधिकांश सत्व गुण के सभी वेद, उपवेद, उपनिषद, इतिहास, उपपुराण, संहिता, शास्त्रों और 6 पुराण में मिलता है। जैसे-विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत, महापुराण, रामायण, महाभारत, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि।
श्रीलिंग महापुराण में शिव के विभिन्न मूर्त पूजन की व्यापक व्याख्या हुई है, जिसमें वर्णन है कि जम्बू द्वीप के उत्तर भाग में हिमालय की पर्वत श्रंखलाओ के मध्य कैलाश पर्वत पर शिव का स्थायी निवास विद्यमान है और वहीं से भोले बाबा जगत का संचालन और पालन कर रहे हैं। इसलिए भगवान शिव की मूर्ति को उत्तर दिशा में स्थापित करना अत्यधिक शुभ व लाभकारी माना गया हैं।
गंगा जल में पांच काले तिल, एक-दो बुंद शहद, एक-दो बुंद दूध से ‘ॐ नमः शिवाय’ अथवा ॐ रुद्राय नमः के जप या महामृत्युंजय मंत्र जप के साथ शिव का अभिषेक करने से भोलेनाथ भक्त की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। शिव लिंग पर बेलपत्र, चंदन, अक्षत, धतूरा, भांग इत्यादि चढ़ाने से शिव को प्रसन्न कर निरोगता और आरोग्यता का वरदान लिया जा सकता है। भोलेबाबा को चढ़ाने हेतु जब कुछ भी न मिले तो भी एक लोटे जल अर्पित कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है। वैसे सच्चे मन से अपने सामर्थ्य अनुसार भगवान शिव का आराधन, पूजन-अर्चन किसी भी क्षण करने लाभ ही होता है।
भगवान शिव की दो स्वरूपो में पूजा का महत्व।
घर के पूजन स्थल पर निम्न स्वरूपों की मूर्तियां रखकर पूजा-अर्चना का लाभ लिया जा सकता है। जैसे-
ध्यान देने योग्य बातें
शिवपूजा में स्त्रियां शिवलिंग छू नही सकती हैं, यह भ्रांतियाँ सनतनियों मे प्रचलित हैं, किन्तु ये तथ्य निराधार हैं बल्कि शिवपुराण में स्पष्ट किया गया हैं कि स्त्रियां शिवलिंग की पूजा आराधना कर उन्हें छू भी सकती हैं, परन्तु शिवलिंग की परिक्रमा निषेध मानी जाती है। इसके पीछे का वैज्ञानिको है कि शिव लिंग के ऊपर से बहा हुआ कोई भी तरल नाभिकीय परमाणु विखण्डन की शक्ति रखता है, जिसे लांघते ही उसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव स्त्रियो पर त्वरित होता है।
द्वितीय दुष्प्रचार है कि स्त्रियो द्वारा शिवलिंग को स्पर्श करने से माता पार्वती रुष्ट होती हैं। ये तथ्य भी निराधार है। इस बिन्दु पर शास्त्रो मे वर्णन मिलता है कि शिवलिंग का गंगा जल, दूध से स्नान अथवा अभिषेक कराये जाने के समय ही स्पर्श करने से शिव पार्वती कि प्रसन्नता का फल मिलता है। इस तथ्य के पीछे आधुनिक विज्ञान का भी प्रमाण मिलता है, क्योकि वैज्ञानिको द्वारा माना गया है शिव लिंग स्वयं मे एक नाभिकीय परमाणु विखण्डन का जागृत केंद्र होता है, जिसे बिना शान्त किए स्पर्श करने से मानसिक एवं शारीरिक क्षति की संभावनाए प्रबल हो जाती है।
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