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FULERA DUJ - फुलेरा दूज.. वो पर्व जब भगवान कृष्ण और राधा रानी ने खेली थी फूलों की होली


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संकलन : अनुजा शुक्ला तिथि : 24-02-2022

सनातन संस्कृति में प्रत्येक माह का अपना एक विशेष महत्व होता है। हर एक माह में कुछ ऐसे व्रत और पर्व आदि होते हैं, जिनको विशेष रूप से मनाया जाता है, इन्हीं में से एक है फूलेरा दूज... हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फूलेरा दूज का त्योहार मनाया जाता है। यूं तो यह त्यौहार संपूर्ण भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन इस उत्सव का चरम आपको मथुरा और गोकुलधाम में ही देखने को मिलेगा। इस दिन यहां पर विश्व भर से श्रद्धालु यह त्यौहार मनाने लाखों की संख्या में आते हैं। फूलेरा दूज का पर्व एक ओर जहां आपको धार्मिक दृष्टिï से ईश्वर के करीब ले जाता है तो वहीं दूसरी ओर यह आपको प्राकृति के करीब भी ले जाता है।

मान्यता के अनुसार फुलेरा दूज के दिन श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों संग फूलों की होली खेली थी, तब से आज तक ब्रज में कृष्ण के भक्त फुलेरा दूज के दिन राधा और श्रीकृष्ण संग फूलों की होली खेलते हैं। मथुरा और वृंदावन में फुलेरा दूज के दिन मंदिरों में भव्य आयोजन किए जाते हैं। राधा-कृष्ण की प्रतिमाओं को फूलों से सजाया जाता है। इस पर्व पर राधा और श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने होली खेलने की शुरुआत की थी। इस दिन को होली के शुभारंभ का दिन भी माना जाता है। पारंपरिक रूप से फुलेरा दूज के दिन रंगीन कपड़े का छोटा सा टुकड़ा भगवान श्रीकृष्ण की कमर पर बांध दिया जाता है, ऐसा करना इस बात का संकेत होता है कि वे अब होली खेलने के लिए तैयार हैं।

ये है पौराणिक कथा

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार राधारानी को प्रकृति और प्रेम की देवी माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार श्रीकृष्ण अपने कार्यों में इतने अधिक व्यस्त हो गए कि लंबे समय तक राधारानी से मिलने नहीं गए। इससे राधा रानी काफी दुखी हो गईं। राधा के दुखी होने से गोपियां भी कृष्ण से रुष्ट हो गईं। इसका असर प्रकृति में नजर आने लगा, पुष्प और वन सूखने लगे। प्रकृति का यह स्तर देखकर श्रीकृष्ण ने राधा की भावनाओं को भांप लिया।

राधा रानी के रूष्ट होने का अंदाजा होने के बाद कृष्ण बरसाना पहुंचे और राधारानी से मिले। कृष्ण को देख कर राधारानी प्रसन्न हो गईं। चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। प्रकृति मुस्कुरा उठी। प्रकृति को हराभरा देख श्रीकृष्ण ने एक पुष्प तोड़ा और राधारानी पर फेंक दिया। इसके बाद राधा ने भी कृष्ण पर फूल तोडक़र फेंक दिया। कृष्ण, राधा के बाद गोपियों ने भी फूल तोड़ कर एक दूसरे पर फेंकने शुरू कर दिए। हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई और सारा माहौल खुशी और उल्लास से भर गया। वह दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया का था। तब से इस दिन को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाने लगा और ब्रज में इस दिन श्रीराधारानी और श्रीकृृष्ण के साथ फूलों की होली खेलने की परंपरा शुरू हो गई।

होली पर्व का शुभारंभ है ये त्योहार

फाल्गुन मास में आने वाला ये त्योहार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है। इस पर्व को होली पर्व का शुभारंभ भी माना जाता है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। मांगलिक कार्यों के लिए ये दिन अत्यंत ही शुभ माना गया है। हिन्दू पंचाग के अनुसार, इस साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फूलेरा दूज 03 मार्च दिन गुरुवार को रात 09 बजकर 36 मिनट पर शुरू हो रहा, जबकि इस तिथि की समाप्ति अगले दिन यानी कि 04 मार्च शुक्रवार को रात 08 बजकर 45 मिनट पर होने वाली है। ऐसे में 4 मार्च को उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए फूलेरा का त्योहार इसी दिन मनाया जाएगा।

कैसे मनाते हैं फुलेरा दूज?

फुलेरा दूज के दिन घरों में और मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। पूजा के समय भगवान कृष्ण को होली पर खेला जाने वाला गुलाल अर्पित किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की मूर्तियों को फूलों से सजाया जाता है। कई जगह इस दिन फूलों की रंगोली भी बनायी जाती है। इस पर्व की खास रौनक ब्रजभूमि और मथुरा के मंदिरों में देखने को मिलती है। सारे धाम को फूलों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे के साथ फूलों से ही होली खेलते हैं। इस दिन से होली तक यह धूमधाम लगातार जारी रहती है। मंदिरों में श्री कृष्ण का कीर्तन किया जाता है। इस पवित्र दिन पर राधा रानी को श्रृंगार की वस्तुएं जरूर अर्पित करें और उनमें से श्रृंगार की कोई एक वस्तु अपने पास संभाल कर रख लें। मान्यता है कि ऐसा करने से जल्द विवाह हो जाता है।

गुलरियों बनाने का भी है रिवाज

होलिका दहन में गोबर से बने उपलों को जलाने की परंपरा है। गाय के गोबर के छोटे-छोटे उपले बनाकर एक माला तैयार कर ली जाती है। फिर इस माला को होलिका दहन वाले दिन अग्नि में डाल देते हैं। इसे ही गुलरियां कहते हैं। जिनको बनाने का काम फुलेरा दूज से शुरू हो जाता है

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