संकलन : नीतू पाण्डेय तिथि : 29-03-2022
ज्योतिष विज्ञान में फलित के बाद उपाय का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और उपायों में ग्रहों की रश्मियों व तरंगों पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। जिसे आज के आधुनिक युग मे रश्मि विज्ञान अथवा, ज्योतिष रत्न विज्ञान की संज्ञा दी जाती है। ज्योतिष रत्न विज्ञान में विभिन्न ग्रहों की रश्मियों व तरंगों को रत्नों के माध्यम से मानवीय शरीर तक स्थापित किए जाने का अस्थायी उपाय अथवा युक्ति है। ज्योतिष शास्त्र अनुसार रत्न धारण की कई पद्धतियां हैं, परंतु बिना सिद्धि अथवा प्राण प्रतिष्ठा के रत्न को धारण करने का विधान नहीं दिया गया है। सिद्धि अथवा प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त रत्न भी जाग्रत होकर विशिष्ट एवं चमत्कारी परिमाण देने लगते हैं।
चीते के समान पिला, सुनहरा, गहरा भूरा और काली धारियो से युक्त बाघमणि सबसे अधिक उपयोगी, प्रभावी तथा शीघ्र फल प्रदाता रत्न है। यह रत्न भी चीते के समान ही धारक को त्वरित प्रभाव के साथ फल प्रदान करता है। धारक में चीते के जैसा आत्म बल,साहस आता है और धारक साहसी एवं पुरुषार्थी होकर प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। इसे बाघमणि, व्याघ्राक्ष, चित्ती, चीता, टाइगर, दरियाई-लहसुनिया आदि अनेक नामों से जाना जाता है। लहसुनिया और बाघमणि में काफी समानता है। दोनों रत्न को घुमाने पर डोरे पड़ती हैं। एक बिल्ली की आंख की तरह तो दूसरा चीते की आंख की तरह चमकता है। दोनों ही वैदूर्य जाति के रत्न हैं। इन्ही तथ्य के आधार पर ही बाघमणि को दरियाई लहसुनिया कहा जाता है।
बाघमणि सिलिकॅान डाइ आक्साइड से बना एक अपारदर्शक रेशेदार स्फटिक है। जिसकी कठोरता 7.0 तथा आपेक्षिक घनत्व 2. 64 से 2.71 के मध्य है। मुख्य रूप से दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, म्यांमार, भारत और अमेरिका आदि देश बाघमणि उपरत्न उत्पादक देश हैं। पीलेपन और सुनहरी आभा के प्रभाव के कारण इसे बृहस्पति का ही उपरत्न कहा जाता है, किन्तु चितकबरा और लहसुनिया की तरह सूत पड़ने के कारण केतु का भी उपरत्न की मान्यता है। पंचधातु में बाघमणि तीव्रता ज्यादा होती है
अत्यधिक परिश्रम के समतुल्य फल की प्राप्ति का न होना, हर पग पर अनेकों संघर्षो और समस्याओ का लगातार सामना करना, प्रयासों का पूर्ण फल ना मिलना, जीवन मृत्यु तुल्य होता चला जाए, शत्रुओ की वृद्धि, यश कीर्ति की कमी, दुख-दरिद्रता बढ़ते जाने की स्थिति और भाग्य साथ न दे रहा हो, तो उनके लिए बाघ मणि रामबाण और वरदानी सिद्ध होता है। आत्म विश्वाश की कमी से व्यापार एवं अन्य कार्यो में असफलताके साथ साथ दुखी जीवन मिलता है, जिसे बाघमणि को धारण करके समाप्त किया जाता है। डरपोक और उदासीन व्यक्तियों का बाघमणि अदृश्य साथी माना जाता है। प्राण प्रतिष्ठा करवा कर सिद्ध बाघमणि धारण करने से लगभग सभी ग्रह जाग्रत होकर धारक को शुभबल देते हैं।
सिद्ध बाघ मणि से लाभ :–
धारण विधि : सामान्यतः रत्न को मंगलवार एवं गुरुवार को गंगाजल और कच्चे दूध में डुबाकर सुबह सूर्योदय के बाद धारण किया जाता है। धारण के समय शक्ति स्वरूपा दुर्गा के मंत्र का जाप करें।
मंत्र: ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं त्रि शक्ति देव्यै नमः।
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